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उज्जैन के 54 वार्डों में लगी 376 सर्वे टीम
यह है कोरोना योद्धा जो दूरस्थ कॉलोनियों से मरीजों को निकालकर ला रही हैं…
शहर में कठिन परिस्थितियों में काम कर रही आंगनवाड़ी और आशा कार्यकर्ता…
उज्जैन। नगर निगम सीमा के 54 वार्डो में काम कर रही 376 सर्वे टीम में एक-एक आंगनवाड़ी कार्यकर्ता एवं आशा कार्यकर्ता शामिल है। इन्हे रोजाना टॉस्क मिलता है। ये तय घरों पर जाकर बातचीत करती है और घर में किसी के बीमार होने पर उसके लक्षणों की जानकारी लेती है। जानकारी को एप में डालती है, जिसका विश्लेषण डॉक्टर्स की एक टीम करती है। एप में डाली गई जानकारी के आधार पर डॉक्टर्स की टीम तय करती है कि संबंधित व्यक्ति का कोरोना जांच हेतु स्वाब का नमूना लिया जाए या नहीं? नमूने लेने के बाद इस बात की गारंटी नहीं होती है कि पॉजिटिव ही आए। लेकिन संदिग्ध मानकर जांच करने पर क्षेत्र को लेकर स्थिति स्पष्ट हो जाती है। यह काम सतत चल रहा है और आगे भी तीन से चार माह तक चलने की संभावना है।
सर्वे टीम के नोडल अधिकारी सह जिला पंचायत सीईओ अंकित अस्थाना के अनुसार इन सर्वे टीम को 54 वार्डो के 376 क्षेत्रों में बांटा गया है। 376 क्षेत्रों में सीमाएं निर्धारित करके उसमें आने वाले घरों की सूची उक्त कार्यकर्ताओं के पास है। उन्हें चार दिन में अपनी सीमा में आने वाले घरों पर जाकर सर्वे करना होता है और जानकारी भरना होती है। पांचवा दिन रेस्ट का रहता है।
छठे दिन पुन:
पहला दिन मानकर वे अपने पूर्व से तय उन्ही घरों पर जाकर सर्वे करती है। ऐसा कंटेनमेंट एरिया सहित पूरे शहर में ओर नगर निगम सीमा में आने वाली कॉलोनियों में हो रहा है। यह क्रम फिलहाल सतत जारी रहेगा। श्री अस्थाना के अनुसार जो क्रम चलता है, उसमें आने वाले सैंपल की जांच करवाई जाती है। यह अलग बात है कि 300 सैंपल की जांच में 2 से 6 या 8 पॉजिटिव ही आ रहे हैं। आम जनता विश्वास रखे कि सर्वे का काम प्रतिदिन चल रहा है और सैंपल लेने का काम भी प्रतिदिन हो रहा है। जांच में पॉजिटिव कम आना, इसे इस रूप में जोड़कर नहीं देखा जा सकता है। उन्होने बताया कि जो मरीज निकलकर आ रहे हैं,वे पांच तरह से एकत्रित की गई जानकारियों के आधार पर मिल रहे हैं-
1. सर्वे के आधार पर।
2. फिवर क्लिनिक से।
3. कंटेनमेंट एरिया से।
4. माइग्रेशन के आधार पर।
5. कांटेक्ट बेस पर।
सामान्य रूप से बुखार-सर्दी-खांसी के मरीजों को ही संदिग्ध माना जाता है। लेकिन ऐसे मरीज भी सामने आए जिनमें लक्षण यह नहीं थे किंतु सर्वे टीम ने चर्चा के आधार पर सुझाया कि इनकी जांच होना चाहिए। जांच पश्चात वे पॉजिटिव निकले। ऐसे मरीज एसिम्प्टेमेटिक अधिक निकल रहे हैं। उन्होने बताया कि सर्वे कार्यकर्ताओं को उनके बांटे गए क्षेत्रों में नगर निगम द्वारा सूची उपलब्ध करवाई गई है, जिसमें स्पष्ट है कि संबंधित क्षेत्र में कितनी कालोनियां, मकान आते हैं ओर सामान्यतया कितने लोग हो सकते हैं। यही कारण है कि सर्वे कार्य निरंतर चल रहा है और मरीज भी सामने आते जा रहे हैं।
लोगों में है भय…फीवर क्लिनिक भी नहीं जा रहे…
नाम प्रकाशित न करने की शर्त के आधार पर सर्वे टीम का कहना है कि लोग फ्लू क्लिनिक पर उतनी संख्या में नहीं जा रहे हैं, जितना जाना चाहिए। लोगों में अभी भी भय है। वहीं कंटेनमेंट एरिया में कांटेक्ट बेस पर मरीज निकल ही रहे हैं। जो माईग्रेट कर गए, उनका पता बातचीत में लग जाता है। अत: वहां की टीम उनको ट्रेस कर लेती है। लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि सर्वे टीम ही इसकी रीढ़ है। आज की स्थिति में शहर के हर घर की जानकारी सर्वे टीम के पास है। लगातार उनके घरों तक पहुंचने के कारण कोई झूठ बोलता है तो पकड़ में भी आ जाता है। ऐसे में समझा जा सकता है कि फिलहाल स्थितियां नियंत्रण में हैं।
इनकी है एक पीड़ा…
आंगनवाड़ी एवं आशा कार्यकर्ताओं से चर्चा में कुछ का कहना था कि उनकी एक पीड़ा है,जिस पर कलेक्टर को ध्यान देना चाहिए। उनके अनुसार कतिपय क्षेत्र ऐसे हैं जहां सघन बस्ती है और गलियों की चौड़ाई है 5 से 8 फिट। मोड़ के बाद का कुछ नहीं दिखता,कुछ नहीं सुझता। अनेक बार शरारती युवक उनके द्वारा की जा रही पूछताछ का विरोध करते हैं या फिर ऐसे जवाब देते हैं कि शर्म आ जाए। ऐसे मामले भी है जिनमें परिजनों के सामने ही फब्तियां कस देते हैं। परिजन कुछ नहीं कहते हैं। अनेक बार डर लगता है। यदि प्रशासन ऐसे एरिया में एक पुरूष सहयोगी की ड्यूटी लगाए तो हम स्वयं को सुरक्षित मान लेंगे। वरना रोजाना घर से निकलते वक्त मन में लगता है कि कोई अनहोनी न हो जाए?